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Dussehra 2024 Puja Time
दशहरा 2024 इस साल 12 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन शस्त्र पूजा, शमी पूजा, और रावण दहन के लिए विशेष शुभ मुहूर्त हैं:
- शस्त्र पूजा का विजय मुहूर्त: दोपहर 2:03 से 2:49 बजे तक।
- शमी पूजा का समय: दोपहर 1:17 से 3:35 बजे तक।
- रावण दहन का शुभ समय: शाम 5:54 से 7:28 बजे के बीच, जो प्रदोष काल के दौरान होता है ।
यह दिन भगवान राम द्वारा रावण के वध और देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय को भी दर्शाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है ।
दशहरा पर लोग क्या करते हैं?
दशहरा के दिन लोग कई तरह की धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं:
- रामलीला: दशहरा से पहले रामलीला का आयोजन होता है, जिसमें भगवान राम की जीवन कथा का मंचन किया जाता है। दशहरे के दिन रावण, मेघनाद, और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है
- शस्त्र पूजा: लोग अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। इस पूजा को विजयादशमी पर विशेष महत्व दिया जाता है
- शमी पूजा: शमी वृक्ष की पूजा भी इस दिन की जाती है। इसे सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसके साथ लोग अपराजिता देवी की भी पूजा करते हैं
- रावण दहन: कई स्थानों पर रावण, मेघनाद, और कुंभकर्ण के बड़े पुतलों को जलाया जाता है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है
- शुभ मुहूर्त में पूजा: लोग दशमी के शुभ मुहूर्त में देवी दुर्गा और भगवान राम की पूजा करते हैं। इस दिन शस्त्र पूजा और शमी वृक्ष की पूजा के लिए विशेष समय निर्धारित होता है
दशहरा पूरे देश में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है, जिसमें हर क्षेत्र की अपनी-अपनी परंपराएं और रीतियाँ शामिल होती हैं।
दशहरा के दिन किसकी पूजा करनी चाहिए?
दशहरा के दिन निम्नलिखित पूजाएं की जाती हैं:
- भगवान राम: दशहरा भगवान राम द्वारा रावण के वध और बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है, इसलिए भगवान राम की पूजा का विशेष महत्व है।
- देवी दुर्गा: नवरात्रि के नौ दिन देवी दुर्गा की पूजा के बाद, दशहरा उनके महिषासुर पर विजय को दर्शाता है, जिससे उनकी पूजा की जाती है।
- अपराजिता देवी: विजय प्राप्त करने की कामना से अपराजिता देवी की पूजा की जाती है।
- शस्त्र पूजा: शक्ति और पराक्रम के प्रतीक के रूप में शस्त्रों की पूजा की जाती है।
- शमी वृक्ष: इसे सौभाग्य का प्रतीक मानते हुए इस वृक्ष की भी पूजा की जाती है।
यह सभी पूजा विधियां दशहरे के दिन शुभ मानी जाती हैं और इन्हें विशेष मुहूर्त में किया जाता है।
दशहरा के दिन क्या नहीं करना चाहिए?
दशहरा के दिन कुछ चीजें नहीं करनी चाहिए जो धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से अनुचित मानी जाती हैं:
- क्रोध और झगड़ा: इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है, इसलिए क्रोध, विवाद, और नकारात्मक सोच से बचना चाहिए।
- शस्त्रों का दुरुपयोग: दशहरे के दिन शस्त्रों की पूजा की जाती है, इसलिए इनका गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। यह दिन शस्त्रों को सम्मान देने के लिए है, न कि उनका अनुचित प्रयोग करने के लिए।
- अशुभ कार्य: इस दिन किसी भी तरह का अशुभ या अनैतिक कार्य नहीं करना चाहिए। यह दिन सकारात्मकता और विजय का प्रतीक है, इसलिए हर काम शुभ और धर्मानुसार करना चाहिए।
- नकारात्मक विचार: दशहरा का पर्व जीवन में सकारात्मकता लाने का संदेश देता है, इसलिए नकारात्मक विचारों और भावनाओं से दूर रहना चाहिए।
- महिलाओं का अपमान: दशहरा देवी दुर्गा की विजय का दिन है, इसलिए इस दिन विशेष रूप से महिलाओं का सम्मान किया जाना चाहिए।
दशहरा पर नॉनवेज खा सकते हैं क्या?
दशहरा एक धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, जिसे अच्छाई की बुराई पर विजय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को लेकर अलग-अलग मान्यताएँ होती हैं। कुछ लोग दशहरा के दिन नॉनवेज खाने से बचते हैं क्योंकि इसे एक पवित्र और धार्मिक दिन माना जाता है, खासकर जो लोग नवरात्रि के व्रत करते हैं, वे इस दिन भी शाकाहारी भोजन ही करते हैं।
हालांकि, कुछ क्षेत्रों में लोग इस परंपरा को सख्ती से नहीं मानते और नॉनवेज भोजन करना व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है। इसलिए यह मुख्य रूप से आपकी व्यक्तिगत आस्था और परंपरा पर निर्भर करता है कि आप नॉनवेज खा सकते हैं या नहीं।
यदि आप धार्मिक परंपराओं का पालन करते हैं, तो शाकाहारी भोजन को प्राथमिकता देना सही माना जाता है।
दशहरा को क्या दान करना चाहिए?
दशहरा के दिन दान करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन कुछ विशेष वस्तुएं दान करने से सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का आगमन होता है:
- सामग्री और अनाज: गरीब और जरूरतमंदों को अनाज, जैसे कि चावल, गेहूं, या दाल दान करना शुभ माना जाता है। यह दान धन और अन्न की समृद्धि लाने में सहायक होता है।
- कपड़े: नए या पुराने (साफ-सुथरे) कपड़े दान करना भी शुभ होता है। यह खासकर उन लोगों के लिए किया जाता है जो आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं।
- सोना या धातु के आभूषण: कुछ लोग सोने या अन्य धातु के छोटे आभूषण दान करते हैं, जिन्हें समृद्धि और सौभाग्य लाने वाला माना जाता है।
- शमी का पेड़: शमी के पेड़ का धार्मिक और पौराणिक महत्व होता है। इस दिन शमी वृक्ष के पत्तों को दान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
- भगवान की पूजा सामग्री: इस दिन पूजा सामग्री जैसे फल, मिठाई, नारियल, फूल, और धूप आदि दान करना भी पुण्यदायक होता है।
- भोजन: जरूरतमंदों या किसी मंदिर में भोजन दान करने से भी विशेष लाभ प्राप्त होते हैं।
- रक्तदान: इस दिन रक्तदान करने को भी बहुत पुण्यदायी माना जाता है, क्योंकि यह दूसरों की जान बचाने में मदद करता है।
दशहरा का पर्व दान-पुण्य करने का सही समय माना जाता है, जिससे व्यक्ति की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार होता है और जीवन में शांति और समृद्धि आती है।
दशहरा में हमें क्या खरीदना चाहिए?
दशहरा के दिन कुछ विशेष वस्तुएं खरीदना शुभ माना जाता है, जो समृद्धि और सुख-शांति को आकर्षित करती हैं। इस दिन निम्नलिखित वस्तुएं खरीदने की परंपरा है:
- सुनार से आभूषण: दशहरे के दिन सोने या चांदी के आभूषण खरीदना शुभ माना जाता है। यह आर्थिक समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक होता है।
- नया वाहन: कई लोग दशहरे पर नया वाहन खरीदते हैं और उसकी पूजा करते हैं, ताकि वह हमेशा सुख और समृद्धि लाए।
- शस्त्र: प्राचीन परंपरा के अनुसार, इस दिन शस्त्र (जैसे तलवार या अन्य उपकरण) खरीदना और उनकी पूजा करना विशेष महत्व रखता है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो सैन्य या सुरक्षा सेवाओं से जुड़े होते हैं।
- नए कपड़े: नए वस्त्र खरीदकर पहनना भी शुभ होता है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए होता है जो नई शुरुआत या नए अध्याय की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं।
- पूजा सामग्री: देवी-देवताओं की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे नारियल, फल, मिठाई, और फूलों की खरीदारी करना भी दशहरा के दिन विशेष रूप से शुभ होता है।
- शमी का पौधा: शमी वृक्ष का धार्मिक महत्व होता है और इस दिन इसे खरीदकर घर या कार्यालय में लगाने से सौभाग्य और सकारात्मकता आती है।
इन वस्तुओं की खरीदारी से दशहरे का त्योहार और अधिक शुभ और समृद्ध बनता है, और इन्हें खरीदना नए लक्ष्यों की प्राप्ति और जीवन में सफलता की ओर एक कदम माना जाता है।
दशहरा की पूजा कैसे करनी चाहिए?
दशहरा की पूजा को शुभ और पूर्ण विधि से करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
- स्नान और स्वच्छता: सबसे पहले सुबह स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को भी स्वच्छ करें और वहां रंगोली या शुभ प्रतीकों से सजावट करें।
- पूजा सामग्री तैयार करें: देवी-देवताओं की मूर्तियों या चित्रों के साथ धूप, दीप, नारियल, फूल, फल, मिठाई, चावल, शमी पत्ते, और शस्त्रों की पूजा के लिए सामग्री रखें।
- अपराजिता देवी और शमी पूजा: दशहरे के दिन देवी अपराजिता और शमी वृक्ष की पूजा की जाती है। शमी पत्तों को स्वच्छ जल से धोकर भगवान राम और अपराजिता देवी को अर्पित करें। शमी वृक्ष की पूजा सौभाग्य और समृद्धि के लिए की जाती है।
- शस्त्र पूजा: यदि आपके पास कोई शस्त्र (जैसे तलवार, चाकू या अन्य उपकरण) हैं, तो उनकी पूजा करें। शस्त्रों पर हल्दी, चावल और फूल चढ़ाएं और दीप जलाएं। यह शक्ति और पराक्रम का प्रतीक है।
- भगवान राम और देवी दुर्गा की पूजा: दशहरे का दिन भगवान राम और देवी दुर्गा की विशेष पूजा के लिए महत्वपूर्ण है। इनकी मूर्ति या तस्वीर के सामने दीप जलाएं, आरती करें, और मिठाई अर्पित करें।
- रावण दहन: दशहरे के मुख्य आयोजन में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होता है। इसे देखकर आप मन में भगवान राम की विजय का स्मरण करें।
- भोग और प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद का वितरण करें। परिवार और पड़ोसियों के साथ मिलकर दशहरे का आनंद लें और एक-दूसरे को बधाई दें।
इस प्रकार, दशहरा पूजा को पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ करें। यह दिन धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ आत्मा की शुद्धि और सफलता की कामना का भी प्रतीक है।
दशहरा के बाद क्या करें?
दशहरा के बाद कुछ खास काम किए जा सकते हैं जो धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण माने जाते हैं:
- शांति और सद्भाव बनाए रखना: दशहरा के बाद का समय बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है, इसलिए मन और घर में शांति और सद्भाव बनाए रखना चाहिए। नकारात्मक भावनाओं से दूर रहें और सकारात्मकता को अपनाएं।
- नवरात्रि या दशहरे के दौरान लिए गए व्रत को तोड़ना: यदि आपने नवरात्रि या दशहरे के दौरान व्रत रखा था, तो इसे उचित तरीके से तोड़ें। व्रत के बाद हल्का और सात्विक भोजन करें।
- दिवाली की तैयारी: दशहरे के बाद आने वाला प्रमुख पर्व दिवाली होता है। इस समय लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, साज-सज्जा की तैयारी करते हैं और दीपावली के लिए आवश्यक सामग्री खरीदते हैं।
- दुर्गा मूर्ति का विसर्जन: यदि दशहरे पर दुर्गा पूजा की जाती है, तो इसके बाद दुर्गा मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। यह परंपरा विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत में प्रचलित है।
- शमी के पत्तों का आदान-प्रदान: दशहरे के बाद कई लोग शमी के पत्तों को एक-दूसरे को सौभाग्य और समृद्धि के प्रतीक के रूप में देते हैं। इसे “सोनापति” के रूप में भी जाना जाता है।
- धन-धान्य और समृद्धि की कामना: दशहरा के बाद घर की समृद्धि और खुशहाली के लिए भगवान की आराधना करें। यह समय नए कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है, जैसे व्यापार या नई योजनाएं शुरू करना।
- आत्मविश्लेषण: दशहरा के बाद लोग अपनी कमजोरियों और बुरी आदतों पर विचार करते हैं और उन्हें सुधारने का प्रयास करते हैं, ताकि जीवन में बुराई पर अच्छाई की जीत बनी रहे।
इन कार्यों से आप दशहरे के बाद के समय को भी शुभ और सफल बना सकते हैं, और आगे आने वाले त्योहारों की तैयारी कर सकते हैं।
सारांश
दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन भगवान राम द्वारा रावण के वध की कथा का स्मरण किया जाता है। दशहरे की पूजा के लिए स्वच्छता, विशेष सामग्री की तैयारी, और भगवान राम और देवी दुर्गा की आराधना की जाती है। इस दिन शस्त्र पूजा और शमी वृक्ष की पूजा भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।
दशहरे के बाद, नकारात्मकता से दूर रहना और सकारात्मकता को अपनाना चाहिए। यदि व्रत रखा गया है, तो उसे उचित तरीके से तोड़ें। आगे दिवाली की तैयारी करें, और शमी के पत्तों का आदान-प्रदान करें। यह समय आत्मविश्लेषण का भी है, जिससे अपनी कमजोरियों को समझकर सुधारने का प्रयास किया जा सके।
सारांश में, दशहरा न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह आत्म-उन्नति, सकारात्मकता और सामाजिक समृद्धि का भी प्रतीक है।